दोबारा

अपनी इच्छाओं का मारा बैठा हूँ,
दुनिया जीत के, इश्क़ से हारा बैठा हूँ,
अपने घर की रोटियाँ नसीब हुई नहीं,
दूसरों का बन सहारा बैठा हूँ,
एक बार तो निकल गया था इस जाल से,
कल से तेरी यादों में दोबारा बैठा हूँ,
थोड़ा बहुत होता तो काम चल जाता,
डर ये है की हिज्र में सारा का सारा बैठा हूँ!

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